Wednesday 14 March 2018

Hindi Poem बंधा था मैं, एक फ़िरकी से (for Grandpa's anniversary)



अगर हमारे प्रिय पापाजी कहीं होंगे
तो वो कया सोच रहे होंगे?
उन्हीं को समर्पित ये रचना :

बंधा था मैं, एक फ़िरकी से,
और लिपटा था मैं मांझे सा;
जो उड़ने लगा, तो अलग हुआ,
फिर कट गया और बहने लगा;
फिरकी की नज़र से ओझल हुआ,
जो छोड़ गया कुछ ऊलझने थी;
जिनहे देखता हूँ तो सोचता हूँ
जब लीपटा था तो कैसा था ?

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